।।जय तेजाजी महाराज।।
तेजल ज्ञान पाली। प्रत्येक वर्ष 8 से 10 महीने के इंतजार के बाद किसान के चेहरे पर बिना फेस वॉश अथवा अन्य किसी कॉस्मेटिक वस्तु का इस्तेमाल किये बगैर चमक आती है तो वो समय होता है बादल के गर्जने का-झमझम बरसने का, मोर की प्यारी सी मधुर ध्वनियों को सुनाई देने का, पशु ओर पक्षियों के भी खुशनुमा होने का यानी इंतजार की घड़ियां खत्म ओर बारिश का मौसम शुरू।
✍️जिसने बीज सहेजा वो किसान बीज तैयार करेगा, जिसको बीज खरीदना है वो बीज लाने की तैयारी करेगा, ओर बहूत सारे किसानों के लिए यही समय सबसे मुश्किल दौर भी होता है क्योंकि जब अपनी जमा पूंजी घर की सौगात-ओर रौनक-सोने अथवा चांदी के जेवर को गिरवी रख बाजार से पैसा लाता है इस आशा में की जहा बीज बोयेगा वहां से अन्न रूपी सोना पैदा कर सीने पर पल रहे ब्याजरूपी बोझ को हल्का अवश्य कर लेगा।
✍️बारिश हुई बड़ा खुश था वो पर इस बात की भनक थी की जो बो रहे हैं वो मिलेगा ये अभी निच्छित नही है, बावजूद आशा और उमंग को साथी मानकर इस कार्य को वर्षो से करता आया है और निरन्तर जारी भी है, किसान वो शब्द है जो सहनशीलता की चरम सीमा को भी पार कर शांत रहता, किसान इस जग में एकमात्र वो इंसान है जो खुद के साथ साथ लाखो पेट भर पाए इस बात की प्रार्थना प्रतिदिन भगवान से करता है।
✍️2-3 महीने के अथक प्रयासों के बाद फसल लहलाने लगती है ओर उस फसल को देखकर किसान परिवार अपने सारे दुख भुला कर बस ये सोचता है कि इस बार वो ब्याजरूपी मुद्रामयी महादानव के चंगुल से अवश्य मुक्त होकर अच्छा जीवन जीएगा।
✍️अचानक एक रात को बादलो की भयंकर गर्जना शुरू होती है और वही किसान जो पहले ये गर्जना सुनकर खुश होता था अब बहुत चिंतित ओर दुखी सा लगने लगता है क्योंकि अब फसल पकने के कगार पर है और अब बारिश की जरूरत नही थी मगर होनी को कौन टाले, नियति के आगे किसकी चलती है सदियो से जिस तरह चलता आया उसी तरह किसान एक बार फिर बारिश की मार झेल अपने अन्नरूपी सोने को बहते ओर बर्बाद होते आंखों से देखता बस रह जाता है।
✍️किसान की सहनशीलता को देखिए इन सबके बावजूद अगले वर्ष सबकुछ होगा कि आशा में एक बार पुनः जीवन दर्द को भुलाकर खुशमय जीने लगता है। लेकिन किसान के बेटे व्हाट्सअप ओर फ़ेसबुक यूनिवर्सिटी से डिग्रियां लेकर फर्जी डिग्री धारी के अंधभक्त बनकर स्वयं को ओर स्वयं के परिवार को आने वाले समय की उस बर्बादी की ओर ले जा रहे है जहा सहनशीलता नही धार्मिक उन्माद,,ओर आपसी द्वेष ओर विवादों में जीवन गुजारना पड़ेगा।
✍️खेती बहुत जरूरी है, रेत का बेटा-खेत का बेटा, बोलना ओर कहना भी अच्छा लगता है लेकिन अब समय है किसान पुत्रो के लिए जब फावड़ा ओर तसली को छोड़ किताबो में समय गुजारे ताकि आने वाले समय मे किसान के बेटे प्रशासनिक पदों पर आसीन हो सके, अब वो समय भी है जब खेती के साथ साथ व्यपार जगत में भी अपने प्रयासों के बलबूते एक अलग और अमिट छाप छोड़ने का।
✍️अब वक्त है किसान पुत्र कहलवाने के साथ साथ हम सब लोग अपने मेहनत, लग्न ओर इरादों के धनी बनकर सफल उधमी अथवा सरकारी नोकरी धारी अधिकारी भी कहलवाए ताकि ऐसे व्यथाओं को झेलने की न नोबत आये और अगर आये तो हमारे अंदर वो क्षमता हो कि हम उसे झेल पाए।