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मृत्यु भोज सामाजिक कलंक है, इसे बंद कर देना चाहिए

तेजल ज्ञान नसीराबाद…


✍️…..हरीराम जाट

इंसान स्वार्थ व खाने के लालच में कितना गिरता है उसका नमूना होती है सामाजिक कुरीतियां। ऐसी ही एक पीड़ा देने वाली कुरीति वर्षों पहले कुछ स्वार्थी लोगों ने भोले-भाले इंसानों में फैलाई गई थी वो है मृत्युभोज। मानव विकास के रास्ते में यह गंदगी कैसे पनप गई यह समझ से परे है। जानवर भी अपने किसी साथी के मरने पर मिलकर दुख प्रकट करते हैं। लेकिन इंसानी बेईमान दिमाग की करतूतें देखो कि यहां किसी व्यक्ति के मरने पर उसके साथी, सगे-संबंधी भोज करते हैं। मिठाइयां खाते हैं। यह एक सामाजिक बुराई है।

किसी घर में खुशी का मौका हो, तो समझ आता है कि मिठाई बनाकर, खिलाकर खुशी का इजहार करें, खुशी जाहिर करें। लेकिन किसी व्यक्ति के मरने पर मिठाइयां परोसी जाएं, खाई जाएं, इस शर्मनाक परम्परा को मानवता की किस श्रेणी में रखें। इंसान की गिरावट को मापने का पैमाना कहां खोजे, इस भोज के भी अलग-अलग तरीके हैं। कहीं पर यह एक ही दिन में किया जाता है। कहीं तीसरे दिन से शुरू होकर बारहवें-तेरहवें दिन तक चलता है। कई लोग श्मशान घाट से ही सीधे मृत्युभोज का सामान लाने निकल पड़ते हैं। मैंने तो ऐसे लोगों को सलाह भी दी कि क्यों न वे श्मशान घाट पर ही टेंट लगाकर जीम लें ताकि अन्य जानवर आपको गिद्ध से अलग समझने की भूल न कर बैठें।

बच्चों की शिक्षा पर खर्च करें
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मृत्युभोज और नशे पर धन राशि खर्च न करते हुए। उस राशि को अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्च करें। जिससे वे पढ़ लिखकर देश और समाज के लिए अच्छा काम कर सकेंगे। शिक्षित व्यक्ति सही मायने में संसार में सबसे अधिक धनी व्यक्ति होता है । रुपया पैसा गाड़ी बंगला जेवरात, ये सभी वस्तुएं एक समय के बाद समाप्त हो जाती हैं। लेकिन शिक्षा एक मात्र ऐसा धन है जो कि जितना खर्च करो बढ़ता ही जाता है। विद्यावान व्यक्ति की हर स्थान पर प्रशंसा होती है व समाज में उच्च स्थान प्राप्त होता है । यह एक ऐसा धन है जिसे ना तो कोई चोर चुरा सकता है, ना ही कोई बांट सकता है, ना ही किसी प्राकृतिक आपदा से यह नष्ट होता है। समय और अनुभव के साथ यह बढ़ता ही जाता है।
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दहेज प्रथा सामाजिक अभिशाप
हमारे देश में दहेज प्रथा एक ऐसा सामाजिक अभिशाप है जो महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों, चाहे वे मानसिक हों या फिर शारीरिक, को बढ़ावा देता है। इस व्यवस्था ने समाज के सभी वर्गों को अपनी चपेट में ले लिया है। अमीर और संपन्न परिवार जिस प्रथा का अनुसरण अपनी सामाजिक और पारिवारिक प्रतिष्ठा दिखाने के लिए करते हैं। वहीं निर्धन अभिभावकों के लिए बेटी के विवाह में दहेज देना उनके लिए विवशता बन जाता है। क्योंकि वे जानते हैं कि अगर दहेज ना दिया गया तो यह उनके मान-सम्मान को तो समाप्त करेगा ही साथ ही बेटी को बिना दहेज के विदा किया तो ससुराल में उसका जीना तक दूभर बन जाएगा।

🌺✍️….हरीराम जाट
📞 94613-76979
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