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कोरोना कोई बीमारी नहीं, यह एक मानव निर्मित तिसरा जैविक विश्व युद्ध है-

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तेजल ज्ञान सांगली। 20/20 क्रिकेट सीजन शुरू हो गया है। इस तरह मार्च 2020 में कोरोना बीमारी और मानव जीवन की पिच पर हमले का दौर शुरू हुआ। धीरे-धीरे यह जानलेवा महामारी में बदल गया। पिछले एक साल से लोग कीड़े-मकोड़े की तरह जी रहे हैं। आंखों से न दिखने वाली अदृश्य कोरोना की बीमारी ने बढे नवयुवा, जवान और बूढ़े लोगों को गायब कर दिया है। इधरच है लेकींन दिखता नहीं ये कोरोना का रूप मानवी जीवन को नष्ट करने लगा। यह कोरोना क्या है? कोरोना कैसे होता है? इसका क्या कारण है? इसके लक्षण क्या हैं? उपाय क्या है? दवा कैसी है? कौन सी? और कहाँ करना है? दिग्गज डॉक्टरों के शोध से और कुछ वरिष्ठ ज्ञानी लोगोंके अनुभव से, कुछ तर्क गलत होने लगे और कुछ तर्क सही होने लगे। मामूली प्राथमिक उपचार का निदान किया गया था। लेकिन वास्तव में कोरोना क्या है? कोई नहीं समझा। कोई कोरोना नहीं मिट गया। मानव जीवन में कोरोना संकट का भीषण अँधेरा फैलने लगा।समय-समय पर सामाजिक दूरी बनाए रखें, सैनिटाइजर का प्रयोग करें, मास्क लगाएं, टीका लगवाएं इतने प्रकार से शासकीय स्तर से मानव समाज में जागरूकता का जागरण हुआ, होने लगा।लेकींन सच मे कोरोना बिमारी है या नहीं कोई पक्का सबुत नहीं मिल रहा। इसके कारण पुरी मानव जाती विचार के जाल मे फसने लगी।
कौन कहता है कोरोना एक बहाना है। यह एक राजनीतिक चाल है। यह कानून के डर से मानव जीवन को समाप्त करने की यह एक वैश्विक महायुद्ध है। यह एक साजिश है। भ्रामक तर्क-वितर्क सुनते-सुनते एक ओर जहां लोगों ने अवैध राजनीतिक चुनाव, मेले, कुंभ मेला, यात्रा, जात्रा, उरुस, विवाह समारोह और अंत्येष्टि समारोह जैसे अनेक सुखी-दुखद आयोजनों ने भयावह भीड़ में आयोजित करना शुरू कर दिया। वहीं कब्रिस्तान में वारिसों को पीपी किट में लपेट कर (लावारिस बनाकर) लावारिस शवों की कतार लगाई जा रही है। कब्रिस्तान में शवों को जलाने के लिए लकड़ी नहीं या जगाह नहीं है। सब खतम होते रहा है। ऐसी हृदयविदारक स्थिति उत्पन्न हो गई है। कही जगाह जली हुई अधजली लाशें और उस अधजली लांशो को तोडते हुये कुतों की भीड ये लापरवाही का दृश्य देखकर.. सुन कर रूह कांप रही है.. दिमाग सुन्न हो रहा है। क्या करे कुछ समज नहीं आ रहा है। कोरोना की जंजीर तोड़ने की साजिश, लॉकडाउन.. बस लॉकडाउन.. नाम से मानव जीवन की जंजीर तोड़ दी.. मानव बस्ती, उद्योग, संचार, सारा मानव जीवन मौके पर ही थम गया। अस्पताल में मरीजों को भर्ती करने के लिए कोई जगह नहीं है। एक -एक आदमी तड़प-तड़प कर मर रहा है लेकिन उसे बचाने के लिए ऑक्सीजन नहीं है या समय पर दवा नहीं मिल रही। बहुत महंगी दवा की पर्याप्त आपूर्ति नहीं मिल रही है। गलती से मिल भी गया तो गरीबों के पास पैसा नहीं है। लॉकडाउन के चलते घर के बाहर और घर के अंदर के लोग एड़ी खुजलाकर मरने लगे। किसी के बीच तालमेल नहीं, मिलन नहीं होता, एक-दूसरे के सुख-दुख को बचाने वाला कोई नहीं होता। सरकारी स्तर पर लोगों को उपलब्ध सभी नागरिक सुविधाएं और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं निष्क्रिय, अर्थहीन, शून्य नियोजन हो गई हैं। एक से अधिक राजनीतिक नेताओं द्वारा विभिन्न युद्धाभ्यास और रस्सियाँ निभाई जा रही हैं।अखबारों और टेलीविजन पर चौबीसों घंटे प्रसारित की जा रही भयावह खबर को सुनकर कई लोग हतप्रभ हैं। कुछ नर्मदिल लोग ही डर के मारे मरने लगे हैं, तो कुछ डर के मारे आत्महत्या करने लगे हैं, जिंदगी बेबस हो गई है..मौत सस्ती हो गई है।
मानव निर्मित कोरोना एक जैविक विश्व युद्ध है। यह अभी भी बिना रुके राजनीतिक संकेत पर है। यह अपनी पकड़ बना रहा है। कुल मिलाकर, यह तभी चलेगा जब सरकार कोरोना को जाने के लिए कहेगी, अन्यथा यह राजनीतिक संकेत पर आएगी।केवल नाम वाला कोरोना कब तक चलेगा? कोई नहीं जानता। तो कभी-कभी इस सब राजनीतिक दबाव में और अपने कानून के डर से, लाचार और तड़पने के बजाय कब और कैसे इस नपुंसक व्यवस्था को मिटाया जाएगा? यह वह शोध है जिसे अभी करने की आवश्यकता है। लेकिन बिल्ली के गले में घंटी बांधने वाला कौन है? यह एक बड़ा सवाल है जो लगातार मेरे दिमाग में है।
कोरोना की पहली लहर 22 मार्च 2020 को आई थी। इसके बजाय, उन्होंने तालियों, प्लेटों और मोमबत्तियों के साथ कोरोना का जन्मदिन मनाया।अब दूसरा जन्मदिन धूमधाम से हवा में मनाया जा रहा है, जब तक दूसरा समाप्त नहीं हो जाता, तब तक अगली योजना अगस्त में तीसरे जन्मदिन की लहर के आगमन का संकेत देने की है, लेकिन यह कहाँ से और कैसे आएगी? कोई अंदाज़ा नहीं। वह हवा से बाहर आया, नकाब लगाया और इंसान का दम घुट गया। अब वह डर है की क्या उसे पानी द्वारा लाया गया तो.? अगर उसे अभी पानी द्वारा बाहर लाया जाए? तो क्या आप पानी भी पीना बंद करेंगे? जब ऐसा होगा तो आखिरकार, इस धरती से मानव जीवन का विषय ही समाप्त हो जाएगा।
यहां पल-पल क्या होगा? कैसे होगा? अंदाज़ा नहीं, आज कल कोरोना एक मजबूत शरीर वाले बड़े नवजवान आदमी को लेकर चल रहा है। आपसे कई गुना कम इम्यूनिटी वाले बच्चों को कोरोना क्यों नहीं हो जाता? लेकिन ये राजनीतिक पूंजीपति कल बच्चों की जान के खिलाफ उठ खड़े होंगे और कोरोना की एक नई लहर पैदा करेंगे। यह भविष्य का प्रत्यक्ष सत्य है। और यह कुछ ही समय की बात है जब ये राजनीतिक उथल-पुथल बच्चों के जीवन पर कहर बरपाती है। लेकिन ऐसी कितनी लहरें कोरोना के नाम से आएंगी? मतलब लाएंगे, कौन बताएगा? दरअसल, गैर-मौजूद कोरोना को बचाते हुए सरकारें कानून के डर से तरह-तरह के दमनकारी प्रतिबंध लगा रही हैं। लेकींन कब तक आदमी अपनी जान हाथ मे लेकर बैठेगा? यह सब करने वाला कोरोना नहीं है। तो हम में से ही एक क्रूर मानवी शैतान है। मनुष्य की मंशा है कि वह उसके इशारे पर नाच कर अपनी आस्था को बेच दे।हमारे अपने लोगों में से एक हमारे अपने लोगों की आत्मा पर चढ़ गया है। आजकल वह विनाशकारी दृश्य दिखाकर मानव समाज में भय फैला रहा है।इंजेक्शन 900 से 15 से 35 हजार रुपये में ही बिक रहा है। गोरख नकली दवाओं का कारोबार कर रहा है।दिन रात मेहनत करके मुश्किल से जीने वाले गरीब मजदूर लोगोंके, मामूली कमाई पर नजर रखकर उसको कानून के नियम का डर दिखाकर एक हजार-दो हजार जबरन दंडात्मक डकैती डाल रहे है। गरीब के मुंह से घास छीन रहे हैं। 100 रुपये के इलाज पर जीवन-मरण के भय की शर्त काट देने की धमकी देकर अपनी आंखों के सामने लाखों लूट रहे हैं, उनके मनमाने शासन ने गरीब लोगों को हैरान कर दिया है। वह एक साजिशकर्ता है लेकिन एक इंसान है। कोरोना अजीब नहीं है, आदमी और आदमी की इंसानियात अजीब है। बोलो कितने दिनतक मूंग की फली को निगलकर और आंख-कान बंद करके अन्धा और बहरा हो जायेंगे?आज हमारा अपना ही मनुष्य अपके ही मनुष्य का शत्रु हो गया है। यह एक भयानक खतरा बनता जा रहा है। लेकिन अब इतना ही काफी है। अब मैं तुमसे विनती करता हूँ यार ..अब आदमी आदमी बनो और सभी के साथ यथासंभव ईमानदारी से पेश आओ। निस्वार्थ बनो एक दूसरे की मदद करो। आज सामने वाले पर खतरे का समय आया है।नहीं जान बुझकर खतरे मे डाला गया है। कल आप खुद्द संकट के जाल मे फस जावोगे।इसे ध्यान में रखना। यार, अपने दिल में उतरो, अंतर्मुखी बनो और अब थोड़ा गहरा सोचो। तुम्हारे अपने आदमी को क्या होगा?
कोरोना एक घातक डरावना वायरस है। इसके खिलाफ साहस ही एकमात्र टीका है। कोरोना एक सर्दी, खांसी, बुखार का कण है। मनुष्य द्वारा इसे दिया गया नया चीनी नाम कोरोना है। कोरोना ही कानून है और कोरोना ही इंसानियत और मानवजाती को खत्म करने की साजिश है।
कोरोना आने से पहले पूरी दुनिया में मौजूद हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर, टीबी, अल्सर, पीलिया, पेट के रोग, अस्थमा, सोरायसिस, एड्स, चिकनगुनिया और डेंगू जैसी इतनी सारी बीमारियां कहां गईं?आजकल कोई भी किसी भी बीमारी से संक्रमित हो, या कोई अक्सिडेंटसे मरे तो भी उसकी कोरोना से ही मौत हो गयी है ऐसें दस्तावेजोंसे साबित करके जबरदस्त ताकत से साजिश रची गई है। ऐसा लगता है कि यहां की इस राजनीतिक रूप से लापरवाह धारा ने जानबूझ कर आम जनता के लिए कोरोना की सबसे भीषण मौत के हालात पैदा करने और कानून की ताकत दिखाकर उन्हें नष्ट करने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया है। ऐसा लगता है कि यहां की इस राजनीतिक रूप से लापरवाह धारा ने जानबूझ कर आम जनता के लिए कोरोना की सबसे भीषण मौत के हालात पैदा करने और कानून की ताकत दिखाकर उन्हें नष्ट करने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया है। क्योंकि राजनीतिक नेताओं के लिए, सेलिब्रिटी फिल्म सितारों के लिए, डॉक्टरों के लिए, साहूकारों के लिए, यह एक खुला सच बन गया है कि कोरोना नहीं है। जहां आपकी पार्टी सत्ता में है वहां कोरोना बहुत कमजोर है और जहां पार्टी सत्ता में नहीं है वहां कोरोना बहुत सक्रिय है।क्या कोई मुझे इस का कारण बता सकता है? लोगों को सड़कों पर उतरकर खुदाई करनी चाहिए।लेकिन हम सब इसे उजागर करने की बजाय डर के अँधेरे साये में हाथ पकड़ कर खुली आँखों से देख रहे हैं और अपने कानों से सुनकर जी रहे है।क्योंकि सरकार ने सरकारी नियमों की जंजीर बांधकर हमारा प्रतिरोध, प्रतिकारशक्ती छीन ली है।
सच में सोचो..एक आदमी का जीवन एक फूल वाले पेड़ के पत्ते की तरह हो गया है जो हरा हो गया है और वह पेड़ जीर्ण-शीर्ण दिखना चाहिए। मनुष्य का जीवन पके पत्ते के समान होता है, कब गिर जाए, कहा नहीं जा सकता आपने क्या कहा होगा? एक अकेला आलिंगन, बच्चों के लिए एक बांध। क्या ऐसा हो सकता है कि बुढ़ापे में अपने जन्म माता-पिता का समर्थन करने की उसकी सभी इच्छाएँ अधूरी रह गई हों? बहुत से लोग एक घर बनाना चाहते हैं एक नया सपना, एक नया ईगल एक नए जीवन की छलांग। अच्छे-बुरे, सुख-दुख के सारे अनुभव गंगा को प्राप्त करना चाहता था और अब खुलकर जीना चाहता हूं..दूसरों को भी जिंदा रखना है। दिल का खौफनाक एकांत, टूटा हुआ दुख, बेचैन दिल और गले में गाढ़े गुस्से का कूबड़ उठ गया होगा, है ना?
तो आइए हम सभी उनके साथ हार्दिक और घनिष्ठ संबंध में शामिल हों। चलो फिर से नई उम्मीद के साथ जीते हैं..
चलो एक दूसरे के साथ रहते हैं, क्योंकि हर इंसान बहुत मौलिक है। जन्म एक बार होता है। उसका पुनर्जन्म नहीं होता। आओ एक दूसरे का सम्मान करें..चलो करीब आते हैं..चलते हैं प्यार का गर्म हाथ..आइए सुख-दुख में शामिल हों। एक दुसरे का सम्मान करते है।आइए एक दूसरे का पूरा ख्याल रखें। मानव जीवन का पुनर्जन्म नहीं है।
आइए एक-दूसरे का हाथ थाम लें और कोरोना महामारी के खतरनाक अंधकार में प्रतीक्षा करें। चलो गुमशुदा जीवन का एक नया तरीका खोजते हैंसकारात्मकता बोये..यह भयानक विद्रूप अंधकार निश्चित रूप से दूर होगा।बआइए एक दूसरे से जुड़ें।आइए हम गलत बातों से बचें और एक दूसरे के सामने साझा करें, सुख-दुख बांटे..चलो शेयर करते हैं..खुलकर बात करते हैं..काम, क्रोध, मोह, प्रेम चलो ईष्या छोड़ो, चलो एक दूसरे को भरोसा दिलाते हैं, चलो एक नया निर्माण करते हैं, क्योंकि… इंसान जो अब नष्ट हो रहा है हम जीना चाहते हैं हम जीना चाहते हैं और आगे बढ़ना चाहते हैं।
मैं दीप्तिमान दीपक का प्रकाश अंधकार के भयानक जीवन को दिखाना चाहता हूं। आओ भयभीत कोरोना की जंजीर को तोड़ें और मानव जीवन मूल्य की निर्भय अखंड मानव श्रंखला को थाम लें..आइए हम इंसान बनकर जिएं इंसानियत के साथ,आइए दूसरों को भी जिएं..!
आइए कोरोना महामारी का नाश करें,
चलो अब केवल मानव जीवन जीते हैं।

कवि, गीतकार, लेखक, समाजसेवी
हिंदरत्न दीपक गंगा भागीरथी लोंढे
सांगली – 86682 55503 wt.
ईमेल- deepaklondhe696@gmail.com

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