तेजल ज्ञान मथुरा। एक अर्थपूर्ण वृतांत – महाभारत काल का कष्टकारी युद्ध होने को था! श्री कृष्ण; दुर्योधन के घर जा कर, युद्ध न करने के लिए संधि करने का आग्रह करते है। लेकिन दुष्ट दुर्योधन द्वारा आग्रह ठुकराए जाने पर, श्री कृष्ण को अत्यंत कष्ट हुआ और वह दु:खी मन से वापस चल पड़े! तभी दुर्योधन द्वारा, श्री कृष्ण से भोजन करने का आग्रह किया। इस पर कृष्ण ने कहा –
’’सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’’
अर्थात् “जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए। लेकिन जब खिलाने वाले एवं खाने वालों के दिल में दर्द हो, वेदना हो, ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं करना चाहिए।”
हिन्दू धर्म में मुख्य 16 संस्कार बनाए गए है, जिसमें प्रथम संस्कार गर्भाधान एवं अन्तिम तथा 16वाँ संस्कार अन्त्येष्टि है।
इस प्रकार जब सत्रहवाँ संस्कार बनाया ही नहीं गया तो सत्रहवाँ संस्कार ‘तेरहवीं संस्कार’ कहाँ से आ जाता है। इससे साबित होता है कि तेरहवी संस्कार समाज के चन्द चालाक एवं धूर्त लोगों के दिमाग की उपज है।
किसी भी धर्म ग्रन्थ में मृत्युभोज का विधान नहीं है। बल्कि महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है *मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है।*
लेकिन जिसने जीवन पर्यन्त मृत्युभोज खाया हो, उसका तो ईश्वर ही मालिक है। जिस परिवार में विपदा आई हो, उसके साथ, इस संकट की घड़ी में जरूर खडे़ हों और तन, मन, धन से इच्छित परिवार को सहयोग करें; परन्तु सचेत रहते हुए, सामूहिक रूप से मृतक भोज का बहिष्कार करें। क्योकि मृत्युभोज बनाने का प्रत्येक कृत्य (जैसे लकड़ी फाड़ी जाती तो रोकर, आटा गूँथा जाता तो रोकर; पूड़ी बनाई जाती है तो रोकर) आँसुओं से भीगा हुआ है। इसी लिए विभिन्न मनीषियों ने मृत्युभोज का जोरदार ढंग से समय-समय पर विरोध भी किया है। ऐसे आँसुओं से भीगे निकृष्ट भोजन एवं तेरहवीं भौज का पूर्ण रूपेण बहिष्कार कर, समाज को एक सही दिशा देने मे सहभागिता दें।
जानवर भी हमारे साथ – साथ सामाजिकता का नैतिक कर्तव्य निर्वाह करते हुए, साथी बिछुड़ जाने पर, उस दिन चारा नहीं खाता है। जबकि 84 लाख योनियों में श्रेष्ठ मानव, मानव की मृत्यु पर हलुवा – पूड़ी खाकर शोक मनाने का ढ़ोंग रचता है। इससे बढ़कर निन्दनीय कोई दूसरा कृत्य हो ही नहीं सकता। तो आप आज से संकल्प लें *किसी के मृत्यु भोज को ग्रहण नहीं करेंगे।
मृत्युभोज समाज में व्याप्त एक ज्वलंत कुरीति एंव आधुनिक समाज के लिये अभिशाप है ।
।।समाज हित सर्वोपरि।।
डॉ कृष्ण पाल सिंह तेवतिया (प्रवक्ता भौतिकी), मथुरा