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एक भ्रम रोड़ (जाति) कौन हैं? – डा कृष्ण पाल सिंह तेवतिया

तेजल ज्ञान मथुरा। अभी हाल ही में सम्पन्न हुए
टोक्यो ओलम्पिक खेलों में हरियाणा के नीरज चोपड़ा ने भाला फेंकने में स्वर्ण पदक हासिल किया। नीरज चोपड़ा के गोत्र व जाति को लेकर काफी चर्चाएँ चल रहीं हैं। नीरज वैसे तो हरियाणा की रोड़ बिरादरी से संबंध रखते हैं । काफी लोगों का सवाल है कि हरियाणा के रोड़ कौन हैं? रोड़ जाति के इतिहास को लेकर पिछले कुछ वर्षों में एक भ्रम फैलाया गया है कि हरियाणा में जो ये रोड़ जाति है इनका संबंध मराठों से हैं, ये वो लोग हैं जो 1761 की पानीपत की लड़ाई में मराठा सेना में महाराष्ट्र से यहाँ आए थे।

मराठा और रोड़ इतिहास का यह भ्रम 1990 के बाद फैलाया गया है। सोचने वाली बात है कि क्या मराठा सेना इतनी बड़ी तादाद में आई थी कि मात्र ढाई सो साल में उनके इतने गाँव बस गए ? जबकि युद्ध में हार के पश्चात हारी हुई मराठा सेना के परिवारों को महाराजा सुरजमल ने सकुशल वापिस महाराष्ट्र भिजवाया था, और जो जाट सैनिक इन परिवारों को वापिस छोड़ने गए थे उनमें काफी वही बस गए थे।

उन जाट सैनिकों के वंशजों को आज भी अपनी जाति का पता है और सभी के सभी अपनी जाति जाट और अपने गोत लिखते हैं।
जहां वो बसे हैं उन गावों को जाट बाईसा के नाम से जाना जाता है और वर्तमान में हते सिंह पुनिया उनके प्रधान हैं। तो फिर उस समय में आए ये मराठा सैनिक, जिन्हें कुछ लोग अब रोड़ बता रहे हैं, वे अपनी जाति अपना इतिहास कैसे भूल गए ? दूसरा प्रश्न यह है कि यह कैसा इतिफाक है कि युद्ध में हार के पश्चात सभी मराठा सैनिक पानीपत से ऊपर की ओर यानि उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर गए?

जबकि मराठा सेना का सेनापति सदाशिव राव भाऊ युद्ध में हार के पश्चात अपनी जान बचाता हुआ जिला रोहतक के गाँव सांघी (पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपिंदर सिंह हुड्डा का गाँव) की तरफ आया और फिर साधू बनकर इसी गाँव में रहा, जहां उनके नाम की आज भी समाधि बनी हुई है। सोचने वाली बात है कि जब सदाशिव राव सांघी गाँव की तरफ आए तो उनके साथ उनके कुछ सैनिक भी आए होंगे तो फिर इस तरफ मराठों अर्थात रोड़ जाति का कोई गाँव क्यों नहीं है? यदि रोड़ ही मराठे हैं, तो वो हर वर्ष भाऊ की समाधि पर लगने वाले मेले में क्यों नहीं आते?

दरअसल, यह सब कोरी झूठ है जिसका प्रचार 1990 के बाद किया गया। हरियाणा की रोड़ जाति का मराठों से कोई संबंध नहीं है। यह सब झूठा प्रचार किसी साजिश के तहत किया गया लगता है। रोड़ जाति जाट जाति का ही एक हिस्सा है।
यदि हम पहनावे की बात करें तो रोड़ जाति की औरतों का पहनावा ब्राह्मणवादी पहनावा अर्थात साड़ी न हो कर सूट सलवार ही है, जो जाटनियों का भी है; जबकि हरियाणा में जो ब्राह्मणवादी जातियाँ हैं उनकी औरतें साड़ी पहनती हैं। ऐसे ही रोडों में भी करेपा अर्थात विधवा विवाह की प्रथा है, जबकि ब्राह्मणवादी जातियों में यह प्रथा नहीं है। ऐसे ही यदि हम गोतों की बात करें तो रोड़ जाति के लगभग सभी गोत जाटों से मिलते हैं। रोड़ जाति के कुछ मुख्य गोत जो जाटों में भी पाए जाते हैं-
अत्री, बढ़गुज्जर, चौपड़ा (गोयत), दहिया, गुलिया, गोलन, चौहान, हुड्डा, खोखर, गोरा, जागलान, कादियान, भाकल, कैंधल, लांबा, लाठर, महला, राणा, बड़सर, बालन,भूरा, धनखड़, आदि। ऐसे गोत कोई भी मराठा जाति में नहीं हैं। मराठा जाति में राजपूत जाट और गुर्जर जाति का पँवार गोत समान रूप से पाया जाता है। रोड़ भी जाटों की ही तरह चौधरी टाइटल लगाते हैं।

रोड़ जाति के इतिहास पर श्री रामदास अपनी किताब ‘आर्यावरत एवं रोड़ वंश का इतिहास‘ में लिखते हैं कि रोड़ सिंध से आए थे और 450 ईसा पूर्व राजा धज ने रोड़ साम्राज्य की स्थापना की थी। राजा सिहासी राय, जिनकी चच ने धोखे से जहर देकर हत्या कर दी थी वो राजा धज के ही वंशज थे। रोड़ इतिहासकार के इस कथन से भी स्पष्ट है कि रोड़ और जाट एक ही हैं। क्योंकि सिंध जाटों की रियासत थी और राजा सिहासी राय मोर गोत के जाट थे। रोड़ जाटों का एक गोत भी है। जाटों के रोड़ गोत की वंशावली का इतिहास तथा रोड़ जाति का इतिहास बिलकुल एक है। इतिहास में एकमत यह भी है कि रोड़ बादली (झज्जर) से कुरुक्षेत्र-करनाल क्षेत्र में आकर बसे थे।

सन् 1207 में तुर्क हमले के बाद बादली से कुछ आदमी, चारण भाटों के अनुसार 84 आदमी, यहाँ थानेसर के जंगल में बसाए गए थे। बादली क्षेत्र गुलिया खाप का क्षेत्र है तथा बदली गाँव गुलिया गोत के जाटों का एक बड़ा गाँव हैं और भाटों के अनुसार उन 84 आदमियों में एक गुलिया भी था और इसके इलावा जो दूसरे गोत थे उनमें खोखर, धनखड़, हुड्डा, कादियान, दहिया, महला, जागलान आदि कुछ ऐसे गोत हैं जो रोहतक जिले में जाटों के गोत हैं । इससे सपष्ट है कि भाटों ने जिन 84 आदमियों का इस क्षेत्र से वहाँ बसने का लिखा है वह जाट थे।

ओलंपिक चैम्पियन नीरज चोपड़ा के गोत को लेकर भी हैरानी नहीं होनी चाहिए। चोपड़ा जाटों का एक बड़ा गोत है। चोपड़ा गोत के जाट राजस्थान में हैं। राजस्थान में चोपड़ा गोत के वैसे तो कई गाँव हैं पर दो गाँव ऐसे हैं जिनका नाम गोत पर ही है – चोपड़ा की ढाणी, तहसील मेड़ता, जिला नागौर तथा चौपड़ा की ढाणी, तनकरड़ा गाँव, जिला चौमु । राजस्थान से चौधरी घासी लाल जी चोपड़ा गोत के विधायक भी रहें हैं । राजस्थान से हरियाणा में आए चोपड़ा गोत के जाट अब अपना गोत गोयत लिखते हैं। चोपड़ा गोत के जाट पहले जिला भिवानी के गाँव कुंगड़ में बसे थे, और फिर कुंगड़ से नरवाना व अन्य जगह फैले । हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के ओएसडी श्री महेंद्र सिंह चोपड़ा भी चोपड़ा (गोयत) गोत के जाट हैं।

जाट और रोड़ एक ही नस्ल हैं,
इसीलिए रोड़ जाति को एसबीसी आरक्षण में हमने अपने साथ रखा था और जाटों का किसी प्रकार का कोई विरोध नहीं था, क्योंकि वे जाट हैं। उस समय रोड़ जाति के प्रधान कुरुक्षेत्र के रहने वाले एडवोकेट श्री आर.डी महला जी थे । जिन्हें मैं अक्सर हँसता था कि आप तो मेरे समधी हैं क्योंकि मेरे बड़े लड़के राकेश की शादी महला गोत में हो रखी है । क्योंकि जब पहली बार मैंने महला साहब से पूछा था कि रोड़ कौन होते हैं ? तो उन्होने बड़ा स्पष्ट कहा था कि रोड़ जाटों से ही निकली जाति है। इसलिए स्वाभाविक है कि वो मेरे समधी थे, जो लगभग एक वर्ष पूर्व ईश्वर को प्यारे हो चुके हैं। सो इसमें जरा भी संशय नहीं होना चाहिए। जाट और रोड़ अलग अलग होते हुए भी एक नस्ल के हैं।

यह तो राजनीति ने हमें बाँट रखा है। जो लोग हमें अलग अलग बताते हैं कुछ दिन पहले यही लोग कहा करते थे कि हिन्दू जाट और सिक्ख जाट अलग अलग हैं,
कुछ तो यह भी कह देते थे कि सिखों में जाट नहीं होते। ऐसे लोगों का काम ही खामखा की बहसबाजी करना और भ्रम फैलाना होता है, और वो ऐसा करते ही रहेंगे। बाकी रोड़ अपनी अलग जाति रखना चाहते हैं तो भी हमें बड़ी खुशी है क्योंकि भाई तो हमारे ही हैं, अलग हो गए तो क्या। क्योंकि भाई से भाई अलग होना तो हम जाटों की प्रथा रही है। जाटों में तो क्या ये प्रथा पूरी दुनिया में है।


डा कृष्ण पाल सिंह तेवतिया प्रवक्ता भौतिकी
सचिव जाट जनचेतना महासभा, मथुरा

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