भाषाओं के वर्गीकरण के पीछे काम कर रही है हीन और संकीर्ण मानसिकता : राजिंदर सिंह बडहेड़ी
तेजल ज्ञान चंडीगढ़, 24 अक्टूबर:
प्रमुख सिख किसान नेता राष्ट्रीय प्रतिनिधि और अखिल भारतीय जाट महासभा चंडीगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष राजिंदर सिंह बडहेड़ी ने सीबीएसई द्वारा सिक्ख गुरु साहिबान की पंजाबी भाषा को मुख्य विषयों से बाहर करने के तानाशाही फैसले की कड़ी निंदा की है। श्री बडहेड़ी ने यहां जारी एक बयान में कहा कि यह फैसला भारतीय संविधान की संघीय भावना के खिलाफ है।
सीबीएसई के निर्णय की आलोचना करते हुए श्री बडहेड़ी ने कहा कि केंद्रीय बोर्ड ने पंजाबी के साथ-साथ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं और कुछ अन्य विषयों को लघु विषय घोषित किया है; जबकि हिंदी और अंग्रेजी को प्रमुख विषयों की श्रेणी में रखा गया है।
श्री बडहेड़ी ने भारत के संविधान का जिक्र करते हुए कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं हैं और उनमें हिंदी भी शामिल है और इन सभी भाषाओं को समान दर्जा प्राप्त है – तो प्रश्न उठता है कि क्या शेष 21 भाषाएं लघु विषयों की श्रेणी में हैं, तो हिंदी को प्रमुख विषयों की श्रेणी में किस मापदंड से रखा गया?
श्री बडहेड़ी ने कहा कि प्रमुख सरकारी संस्थान का यह तानाशाही फैसला साबित करता है कि भाषाओं के वर्गीकरण के पीछे एक खास तरह की बहुलवादी मानसिकता काम कर रही है। यह घटना यह भी दर्शाती है कि सरकारी संस्थान न केवल लोगों के प्रति असंवेदनशील हैं बल्कि स्थानीय भाषाओं के प्रति भी उनमें कोई सहानुभूति नहीं है।
उन्होंने कहा कि पंजाबी समेत क्षेत्रीय भाषाओं को नाबालिग कहने की पिछली मानसिकता के पीछे भी बोर्ड का अभिजात्य रवैया था। श्री बडहेड़ी ने आगे कहा कि केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को यह भी समझना चाहिए कि मातृभाषा में दक्षता हासिल करने से ही छात्रों का विशेष, उल्लेखनीय और रचनात्मक विकास हो सकता है।
इसलिए शिक्षा मंत्रालय को तुरंत इस फैसले को वापस लेने के लिए बोर्ड को आदेश जारी करना चाहिए। श्री बडहेड़ी ने कहा कि राज्यों को स्थानीय भाषाओं को मामूली विषय मानकर केंद्रीय शिक्षा बोर्ड का विरोध करना चाहिए।