तेजल ज्ञान शेरसिंह चाहर ब्यूरो चीफ जयपुर। हरियाणा में सोनीपत जिले का गांव लिवासपुर शहीद उदमी राम के नाम से जाना जाता था। सोनीपत रोड पर बसा यह छोटा सा गांव 1857 की क्रांति में देश भर की नजरों में गया था। 1857 में जब देश में अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठ रही थी तो लिवासपुर के नंबरदार चौधरी उदमी राम भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए थे। उन्होंने हरियाणा में सबसे पहले अंग्रेजों को लगान देने से मना कर दिया था। उदमी राम को जब पता चला कि तीन अंग्रेज अधिकारी बहालगढ़ में लगान वसूलने रहे हैं तो उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर तीनों की हत्या कर दी थी। उसके बाद अंग्रेजों ने उदमीराम व उसके साथि को राई रेस्ट हाउस में एक पीपल के पेड़ पर बांध दिया और उनके शरीर में लोहे की कील ठोक दी। 22 दिन तड़पकर दोनों की मौत हो गई। इसी तरह से उदमी के 22 साथियों को एक पत्थर के कोल्हू से कुचलकर मार दिया था।
लिवासपुर के 22 युवकों की मौत का गवाह वह खूनी कोल्हू आज भी देवीलाल पार्क में रखा हुआ है। इस कोल्हू को देखने के लिए देश भर से पर्यटक यहां आते हैं। सरकार ने भी कोल्हू पर शहीद उदमीराम की शहादत की पूरी कहानी का बोर्ड लगा रखा है।