तेजल ज्ञान हरिराम चौधरी अजमेर।
आज़ादी का शाब्दिक अर्थ ………. पूर्ण रूप से स्वतंत्र होना है ……अर्थात किसी भी रूप में आप पर किसी का नियंत्रण न हो. आज़ादी का अर्थ है…………. कोई भी आप के जीवन में हस्तक्षेप ना करे. लेकिन हमारे जीवन में ऐसी आज़ादी किसी काम की नहीं है ……. कारण………इससे मानव की समुचित विकास की संभावना नहीं बनती है.
स्वाभाविक रूप से जो हमारे अधिकार हैं …….उनकी स्वंत्रता हमें मिलनी चाहिए. एक बच्चे का अपने माता-पिता का प्यार पाना उसकी अधिकारिक स्वंत्रता है. भूख लगने पर बच्चे का रोना ……… स्वाभाविक लक्षण है………..यह कृत्य उसकी स्वंत्रता है. बच्चे की माता उसके इस कृत्य पर उसको भोजन उपलब्ध कराती है………यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है……..और हम लोग भी इसे अन्यथा नहीं लेते है.
लेकिन यदि बच्चे बड़े होने पर उपद्रव करते हैं ……तो हम उनको ऐसा करने की आज़ादी नहीं देते हैं……..हम उनकी इस स्वतंत्रता पर हस्तक्षेप करते हैं……..यह अनुशासन है ….. यह मानव के चारित्रिक उत्थान एवं सामाजिक प्रक्रिया के लिए ….आवश्यक तत्त्व है.
इसी प्रकार सरकार की भी यह जिम्मेदारी है कि…………… वह नागरिकों के विकास एवं सुविधा हेतु प्रयास करे……….. समाज के हर वर्ग को स्वस्थ एवं स्वतंत्र माहौल मिले ताकि उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके …………यही सच्ची स्वतंत्रता है.
प्रत्येक राष्ट्र का आर्थिक स्तर अलग अलग होता है………अतः सुख एवं समृधि की एक सीमा हो सकती है………..लेकिन अधिकारों एवं कर्तव्यों के मिश्रण से ………स्वास्थ्य और चरित्र की दृष्टि से ………..प्रत्येक व्यक्ति को मजबूत बनाया जा सकता है. कम से कम इतना अधिकार तो दिया जा सकता है…………कि व्यक्ति भयमुक्त वातावरण में अपनी रूचि का काम कर जीवन यापन कर सके.
लेकिन हमें भी अधिकारों के साथ साथ ……….. कर्त्तव्य पालन के लिए तैयार होना चाहिए ………… क्यूंकि पुरे राष्ट्र के विकास ………. राष्ट्र के लोगों कि सुविधा………… विश्व में देश को सिरमौर बनाने ………… के लिए यह आवश्यक है……. कर्तव्य और अधिकार ……एक दूसरे के पूरक हैं……. आज़ादी का अर्थ ऊच्रिन्ख्लता या मनमानी नहीं है.
१५ अगस्त ………….. स्वतंत्रता दिवस ………… लेकिन …………… क्या हम वाकई स्वतंत्र हैं. यदि एक भारतीय से पूछा जाये ………….
तो उत्तर “नकारात्मक” होने की संभावना अधिक है ……. स्वतंत्रता अर्थात……….. शारीरिक …. मानसिक ….. बौधिक ….. धार्मिक …. शेक्षणिक …. प्रशासनिक …. न्यायिक …. सामरिक …. राजनैतिक स्वतंत्रता.
स्वतंत्र प्रशासनिक व्यवस्था …. न्याय प्रणाली …. एवं शिक्षा पद्यति …….. राष्ट्र की प्रगति एवं स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण आवश्यकता है…… लेकिन हम आज भी इस दिशा में कुछ भी कर पाने में असमर्थ रहे हैं …….. और आज भी अंग्रेजो के बनाये गए नियमो एवं पद्यतियों का पालन करने पर विवश हैं……… यह एक दुख एवं चिंता का विषय है …….. क्योंकि अंग्रेजों द्वारा बनाये गए नियम उनके स्वार्थ सिद्धि करने के लिए बनाये गए थे. ……….. यही कारण है हमारे देश में अस्त व्यस्त सामाजिक जीवन का.
देश व्यवस्था के हर क्षेत्र में असफल नज़र आ रहा है…………….
चाहे सीमाओं का मामला हो ……….. चाहे अंदरूनी आतंकवाद……..नक्सलवाद………क्षेत्रवाद की समस्या…….. जातिगत समीकरण ……….या……जातिवाद…….. भूखमरी ……… गरीबी …… न्याय ……. या ….. कोई भी समस्या हो ……..
हम प्रशासनिक रूप से विफल साबित हो चुके हैं.
एक प्रशासनिक रूप से विफल राष्ट्र में स्वतंत्र होना कोई मायने नहीं रखता……………
चाहे ऐसे राष्ट्र में आपको कितनी भी आज़ादी क्यूँ न मिले आप कुछ भी कर पाने में असमर्थ ही साबित होंगे …………….
इसलिए जरुरत है प्रशासनिक रूप से सफल ढांचा तैयार करने की ……………
तभी हम स्वाभिमान के साथ उन्नति कर पाएंगे और तभी हमें वास्तविक आज़ादी प्राप्त हो पायगी ……..
आइये …… वास्तविक आज़ादी के लिए एक बार फिर ……
आज़ादी की नई जंग में भागीदार बने……..
जय भारत जय संविधान जय विज्ञान
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भारत का संविधान,भाग 3,मौलिक अधिकार
अनुच्छेद 19 स्वतंत्रता का अधिकार | भारत का संविधान > भाग 3 : मूल अधिकार > स्वातंत्र्य अधिकार > अनुच्छेद 19
वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार का स्थान मूल अधिकारों में सर्वोच्च माना जाता है। किसी विद्वान ने ठीक ही कहा है कि “स्वतन्त्रता ही जीवन है”, क्योंकि इस अधिकार के अभाव में मनुष्य के लिए अपने व्यक्तित्व का विकास करना संभव नहीं है।
भारत का संविधान के अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 तक में भारत के नागरिकों को स्वतंत्रता सम्बन्धी विभिन्न अधिकार प्रदान किये गये हैं। ये चारों अनुच्छेद दैहिक स्वतन्त्रता के अधिकार पत्र-स्वरूप हैं।
उपर्युक्त स्वतंत्रता मूल अधिकारों की आधार-स्तम्भ हैं। इनमें छह मूलभूत स्वतन्त्रताओं का स्थान सर्वप्रमुख है। अनुच्छेद 19 भारत के सभी नागरिकों को निम्नलिखित छह स्वतन्त्रताएँ प्रदान करता है
अनुच्छेद 19: वाक्-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण
✍️19(1): सभी नागरिकों को-
♦️(क) वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का,
♦️(ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,
♦️(ग) संगम या संघ 1या सहकारी सोसाइटी बनाने का,
♦️(घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,
♦️(ड) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, और
♦️(च)3 ——नाबूद (संपति का अधिकार)
♦️(छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने का अधिकार होगा।
✍️19(2): 4 खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 5भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय-अवमान, मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
✍️19(3): उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर भारत की प्रभुता और अखंडता या लोक व्यवस्था के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
✍️19(4): उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 5भारत की प्रभुता और अखंडता या लोक व्यवस्था या सदाचार के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
✍️19(5): उक्त खंड के 6उपखंड (घ) और उपखंड (ङ) की कोई बात उक्त उपखंडों द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में या किसी अनसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त निर्बंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके परिवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
✍️19(6): उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में युक्तियुक्त निर्बंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निर्धारित नहीं करेगी और विशिष्टतया 7उक्त उपखंड की कोई बात
♦️(i) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने के लिए आवश्यक वृतिक या तकनीकी अर्हताओं से, या
♦️(ii) राज्य द्वारा या राज्य के स्वामित्व या नियंत्रण में किसी निगम द्वारा कोई व्यापार, कारोबार, उद्योग या सेवा, नागरिकों का पूर्णतः या भागतः अपवर्जन करके या अन्यथा, चलाए जाने से,
जहां तक कोई विद्यमान विधि संबंध रखती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या इस प्रकार संबंध रखने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
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अनुच्छेद: 20. अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण——
(1) कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए तब तक सिद्धदोष नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि उसने ऐसा कोई कार्य करने के समय, जो अपराध के रूप में आरोपित है, किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया है या उससे अधिक शास्ति का भागी नहीं होगा जो उस अपराध के किए जाने के समय प्रवृत्त विधि के अधीन अधिरोपित की जा सकती थी।
(2) किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित और दंडित नहीं किया जाएगा।
(3) किसी अपराध के लिए अभियुक्त किसी व्यक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध साक्षी होने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
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अनुच्छेद: 21. प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण——
किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
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हरीराम जाट
नसीराबाद,अजमेर (राजस्थान)
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