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पर्यावरण की रक्षा मानव जीवन की सुरक्षा है-

तेजल ज्ञान विदिशा। लाखन सिंह जाट लेखक चिंतक विचारक समाजसेवी जिला मंत्री भारतीय मजदूर संघ
वर्ष 1972 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानव पर्यावरण विषय पर संयुक्त राष्ट्र महासभा का आयोजन किया गया था। इसी चर्चा के दौरान विश्व पर्यावरण दिवस का सुझाव भी दिया गया और इसके दो साल बाद, 5 जून 1973 से इसे मनाना भी शुरू कर दिया गया। 1987 में इसके केन्द्र को बदलते रहने का सुझाव सामने आया और उसके बाद से ही इसके आयोजन के लिए अलग अलग देशों को चुना जाता है। इसमें हर साल 143 से अधिक देश भाग लेते हैं और इसमें कई सरकारी, सामाजिक और व्यावसायिक लोग पर्यावरण की सुरक्षा, समस्या आदि विषय पर बात करते हैं।
चिपको आन्दोलन
1973 में प्रारम्भ हुआ। एक दशक के अन्दर यह पूरे उत्तराखण्ड क्षेत्र में फैल गया था। चिपको आन्दोलन की एक मुख्य बात थी कि इसमें स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी।
चिपको आंदोलन वनों का रेणी में 2400 से अधिक पेड़ों को काटा जाना था, इसलिए इस पर वन विभाग और ठेकेदार जान लडाने को तैयार बैठे थे जिसे गौरा देवी जी के नेतृत्व में रेणी गांव की 27 महिलाओं ने प्राणों की बाजी लगाकर असफल कर दिया था।
राजस्थान में मारवाड़ रियासत के अंतर्गत आने वाले जोधपुर का ग्राम खेजड़ली है उस गांव में जो घटना घटित हुई वह अजय और अमर हो गई।
1451 के पूर्व बिश्नोई समाज जाट समुदाय का ही विभिन्न अंग था परंतु पर्यावरण प्रेमी पशु पक्षी प्रेमी होने के कारण पशु वध एवं शिकार रोकने के लिए उन्होंने अपने 20 और 9 नियम बनाते हुए बिश्नोई कहलाए ।
विश्नोई समाज संत जम्बोजी का अनुयायी हे जो प्रकृति एवं जीवो के संरक्षण को ही जीवन मान गए हे।
28 अगस्त 1730 को अमृता देवी उनकी तीन बेटियों का बलिदान
सन 1730 इसवी में मारवाड़ रियासत के खेजडली गाँव में कुछ ऐसा हुआ जो सदियों तक अमर हो गया।
मारवाड़ रियासत के राजा अभयसिंह मारवाड़ एक महल बनाना चाहते थे उसके लिए चूना गर्म करने के लिए पेड़ के लडकियों की आवश्कता पड़ी तो राजा की सेना खेजडली गाँव पहुची।
अमृता देवी अपने 3 बेटियों आसू, भागु और रत्नी के साथ खेजड़ी के पेड़ से लिपट गयी तथा पेड़ काटने से रोक दिया तथा बोली:
सर सान्टे रूख रहे तो भी सस्तो जाण
यह खबर महाराज तक पहुची तब जोधपुर के महाराज अभयसिंह ने हर हाल में लडकिया लाने का हुक्म दे दिया।
सेनिको ने अमृता देवी और उनकी 3 बेटियों पर कुल्हाड़ी से प्रहार कर उनके टुकड़े टुकड़े कर खेजड़ी के पेड़ो को काटना शुरू किया यह बात पास के गावो में फेली तब 83 गाँवो से विश्नोई समाज के लोग वहा आ गए।
धीरे धीरे 363 विश्नोई खेजड़ी के पेड़ो से लिपटते गए और मारवाड़ के सेनिक पेड़ो सहित उनके शरीर के टुकड़े करते गए पुरे खेजडली गाँव की धरती खून से लाल होती चली गई गांव में खून की नदियां बह गई।
जोधपुर में हुए बहु चर्चित सलमान खान के हिरण शिकार
का केस भी राजस्थान उच्च न्यायलय में विश्नोई समाज द्वारा लगा कर सलमान खान जेसे बड़ी हस्ती को भी 4 दिन जोधपुर जेल में डलवा दिया था।
भारतीय संस्कृति में पर्यावरण को ईश्वर के रूप माना जाता है चाहे वह वृक्ष हो पर्वत हो
जंगल हो जीव जंतु पशु पक्षी इत्यादि सभी के साथ है मिलजुल कर रहते थे और अपने परिवार के सदस्य ही मानते थे जिसके कारण बहुत ही सुखद जीवन रहता था।
भगवान जगन्नाथ जी का ऐतिहासिक रथ यात्रा होती है प्रत्येक वर्ष रथ नया बनाया जाता है और लकड़ी से ही उसका निर्माण किया जाता है परंतु वृक्ष काटने के पूर्व उतने वृक्षों को लगाया जाता है वृक्षारोपण किया जाता है।
परंतु हजारों वर्षों की परतंत्रता के कारण हमारे संस्कार हमारी संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा और धीरे-धीरे विदेशी संस्कृति का प्रभाव भारत की संस्कृति पर पढ़ा जिसके कारण मानव जीवन खतरे में है पर्यावरण दूषित हो रहा है वृक्षों की अंधाधुंध कटाई विकास के नाम पर की जा रही है अवैध उत्खनन किया जा रहा है हर प्राकृतिक वस्तुओं का उपभोग किया जा रहा है जिसके कारण पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है ।
*विकास के नाम पर अंग्रेजों ने मुंबई और दिल्ली के बीच में रेल सेवा प्रारंभ करने के नाम पर हजारों चंदन और सागौन के पेड़ों की कटाई की गई सतपुड़ा एवं विंध्याचल पर्वत वृक्ष हीन बना दिया और बहुत कीमती लकड़िया विदेशों में सप्लाई की गई।
आज भी देश एवं प्रदेशों के अनेकों जंगल में रातो रात कटाई की जा रही है।
*हड़प्पा संस्कृति* में सड़कों के दोनों और फलदार एवं छायादार पेड़ लगाए जाते थे जिससे राहगीरों को फल एवं छाया प्राप्त हो सके।
हम जानते हैं कि बाल अवस्था में हनुमान जी ने लाल फल समझकर सूर्य भगवान को निगल लिया इंद्रदेव द्वारा हनुमान जी पर प्रहार किया जिससे वह मूर्छित हो गए और पवन देव ने क्रोधित होकर कुछ समय के लिए वायु प्रभाव बंद कर दिया जिसके कारण जीव जंतु पशु पक्षियों का दम घुटने लगा इसी प्रकार से कोविड-19 में ऑक्सीजन की कमी के कारण कितने निर्दोष लोगों की जान चली गई हमें सोचना होगा।
हमें पर्यावरण का संरक्षण करना होगा हमें वृक्षारोपण करना होगा
आज अनेकों संस्थान सिंगल प्लास्टिक मुक्त करने के लिए अभियान चला रहे हैं डिस्पोजल बंद होना चाहिए पॉलिथीन बंद होना चाहिए जिसके दुष्परिणाम देखने को मिल रही है भयंकर जटिल बीमारियां हो रही है।
अनेक संस्थान वृक्ष मित्र गुरु छाया वृक्ष अभिभावक जिम्मेदारियां देकर कार्य कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा भी हरियाली अमावस्या पर व्यापक रूप से वृक्षारोपण किया जाता है बहुत ही सराहनीय है।
भारत में जल जमीन और जंगल के लिए हमेशा संघर्ष रहा है और उसकी रक्षा और सुरक्षा के लिए यहां के निवासियों ने अपना बलिदान हजारों की संख्या में न्यौछावर किया है।
जोधपुर की ऐतिहासिक घटना 28 अगस्त को होने के कारण सरकार को 28 अगस्त को पर्यावरण दिवस मनाना चाहिए।

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