तेजल ज्ञान लाखन सिंह जाट विदिशा
लेखक चिंतक विचारक समाजसेवी अधिवक्ता रेलवे सलाहकार अध्यक्ष अखिल भारतीय जाट महासभा जिला मंत्री भारतीय मजदूर संघ
अन्नदाता नरवाई में आग कब रुकेगी
भारतीय संस्कृति में किसान प्रकृति के साथ अपना संबंध बनाकर चलता था अर्थात प्रकृति के अनुसार जीवन यापन करता था किसान एक ऐसी प्रजाति है जिसमें जीव जंतु पशु पक्षी गरीब अमीर साधु संत भिखारी सरकार व्यापारी व्यापार निर्भर रहता है।
एक समय हुआ करता था जब फसल काटने के पश्चात जब तक बारिश नहीं हो जाती थी तब तक खेत में जीव जंतु पशु पक्षियों के लिए भरपेट भोजन की व्यवस्था रहती थी परंतु आज के समय में आग लगाने के कारण पशु पक्षी जीव जंतुओं के लिए कुछ है और जो लाखों जीव जंतु खेतों में निवासरत रहते हैं वह जलकर भस्म हो जाते हैं इन सब के हत्याओं का जिम्मेदार कौन ? हो सकता है किसान हो और इसलिए अन्नदाता परेशान है। किसान के घर में सुख शांति समृद्धि नहीं है क्योंकि किसान तो पालनहार है अन्नदाता है।
हत्यारा नहीं लेकिन आज की स्थिति में सबसे अधिक हत्यारा कौन है
क्योंकि आग के माध्यम से विषैली कीटनाशक जहरीली कीटनाशक पेस्टिसाइड डालने के कारण लाखों जीव जंतु पशु पक्षी मारे जा रहे हैं और मनुष्य का जीवन भी कम होता जा रहा है ।
कभी-कभी तो नरवाई में आग लगने से फार्म हाउस पर रहने वाले परिवार जलकर नष्ट हो जाते हैं मवेशी जलकर नष्ट हो जाती है फसले नष्ट हो जाती है पर्यावरण दूषित हो जाता है।
दिल्ली के आसपास पराली हरियाणा पंजाब में धान के खेत में आग लगाई जाती है जो दिल्ली की हवा में जहर का काम करती है।
जब किसान अपने गेहूं की फसल काटकर घर लाता था तो आषाढ़ के महीने तक खेत में कुछ ना कुछ मिलता था गरीब मजदूर उसे खेत में बीन बीन कर गेहूं इकट्ठा करते थे पशु भी पेट भरने के लिए उस खेत में जाया करते थे।
भारत ऋषि मुनियों का देश है तपस्वियों का देश है इन्हीं ऋषि मुनियों तपसियों से हमने सीखा है।
एक कणाद ऋषि हुए उन्होंने अपने जीवन में प्रतिज्ञा ली में उस सामग्री को इकट्ठा करके भोजन का निर्माण करूंगा जिस पर संसार किसी का अधिकार नहीं रहेगा अर्थात कण कण इकट्ठा करके भोजन करूंगा इसलिए उनका नाम कणाद ऋषि पड़ा उनका वास्तविक नाम कश्यप था
सोचिए अन्नदाता कितने जीव जंतुओं पशु पक्षियों के आप हत्यारे होते जा रहे हैं।
जब सरकारी स्तर पर स्ट्रारीपर या रोटावेटर उपलब्ध कराया जाये
– जब तक मूंग के मूल्य के बराबर भूसे का मूल्य नहीं मिलेगा ।
– जब तक मूंग की आमदनी से ज्यादा उसमें लगने वाली लागत न बढ़ जाये, जैसे सोयाबीन में हुआ ।
– निरन्तर आग लगाने से जब तक खेत की मिट्टी अनुपजाऊ न हो जाये ।
– कोई चमत्कार हो जाये और खेती के साथ पुनः पशुपालन प्रारम्भ हो जाये । क्योंकि नरवाई जलाने वाले गौपालन अथवा पशुपालन नहीं करते । वे बहुत पहले ही अपना गौवंश सड़कों पर छोड़ चुके हैं ।
#आग_ही_आग
नरवाई में आग लगाने से भूमि की जैव विविधता समाप्त हो जाती है। भूमि के सूक्ष्म जीव जलकर नष्ट हो जाते हैं। फलस्वरूप जैविक खाद का निर्माण बंद हो जाता है। इससे जलधारण क्षमता कम होती है, खेत की सीमा पर पेड़-पौधे जलकर नष्ट हो जाते हैं, पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है, वातावरण के तापमान में वृद्धि से भूमि गर्म होती है।
गेहूं कटने के बाद बचे हुए फसल अवशेष नरवाई जलाना खेती के लिए नुकसानदायक हो सकता है। नरवाई जलाना धारा 144 के तहत प्रतिबंधित है।