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संपादकीय-हमारी सामाजिक जिम्मेदारी क्या है?

हमारे समाज मैं आजकल इतनी ज्यादा कुरीतिया आ गयी है की इनको किसी एक के हटाने से नहीं हट सकती हम सबको एकजुट होकर प्रयास करना होगा “एकजुट ” का मतलब कोई बहुत बड़ा मोर्चा नहीं निकालना हम सबको केवल अपने आपको बदलना होगा अपनी सोच को अपनी संस्कृति और अपने संस्कारों के हिसाब से बनाना होगा। मेरे हिसाब से अब हम लोगो को कमर कस लेनी चाहिए अपने आपको सुधारने में। जिस प्रकार समाज मैं बहुत सी कुरीतिया चल रही है। जिस कारण हमारा समाज पिछड़ता जा रहा है। इसका कोई जुमेदार नही है हम खुद इसके जुमेदार है। इसीलिए हम एक दुसरे के उपर आरोप प्रत्यारोप न कर के सिर्फ और सिर्फ अपने आपको अपने संस्कारों के आधार पर बदल डाले और ये न सोचे की वो पहेले अपने आपको बदले तब हम बदले, ऐसा नहीं करे बल्कि अपने आपको उससे पहेले बदल डालो जिससे समाज के और लोगो को एक प्रेरणा मिले और एक एक करके सब अपने आपको बदलना शरू कर दे। हमेशा शुरुआत अपने आप से करे दुसरो से कभी उम्मीद न करे। पहेले आप पहेले आप के चक्कर मैं हमारा समाज आज कोण सी दिशा मैं आधुनिक हो रहा है वो अब आपके सामने ही है। बोलने को तो हम आधुनिक हो रहे है पैर आधुनिकता का असली चेहरा आप सभी देख ही रहे है। अब हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि अब अपनी आंखे खोल ले और कमर कस ले कि हमें अपने आपको सुधारना है न की समाज को जब आप अपने आपको सुधार लेंगे तो आपको समाज सुधरा हुआ दिखेगा। हमारी सभ्यता मैं कहीं कोई कमी नहीं है, कमी है तो वो हमारी सोच मैं आ गयी है जो हम अपनी सभ्यता को भूल कर दुसरो की सभ्यता को अपना रहे है देखा जाए तो इसमें कोई बुराई भी नहीं हैं पर दुसरो की सभ्यता से अच्छी बातें अपनी सभ्यता मैं जोड़े जिससे अपना समाज एक आदर्श समाज के रूप मैं संसार के सामने आये। जब एक बच्चा पैदा होता है तब उसके माँ बाप उसके उसका सहारा बनते है पैर जब माँ बाप बुडे होते है तब बच्चे उनका सहारा नहीं बनते ऐसा क्यों ? ये सब कहीं न कहीं अशिक्षा और अपने संस्कारों से भटकना ही तो है क्या हमारा संस्कार हमको ये सब करने की आज्ञा देता है कोण से ग्रन्थ, वेद में लिखा हुआ है की बुडे माँ बाप को घर से निकाल दो। ये सब अशिक्षा, अज्ञानता के कारन हो रहा है। अशिक्षा, दबंगों की दबंगई सहने पर विवश करती है। अशिक्षा हमारे समाज मैं बहुत बड़ा Role Play कर रही है। वो हमारे समाज के पतन का कारण बन रही है, अशिक्षा से बरोजगारी पनपती है बरोजगारी से अपराध की दिशा में भटक जाता है। और अपराध की दिशा में जाने वाला हमारे समाज का ही कोई व्यक्ति होता है। अपना ही कोई भाई बंधू होता है। वो अपने ही समाज का एक अंग होता है। वो कोई देवदूत या एलियन नहीं होता की उसके ऐसा करने से हमको या समाज कोई फर्क न पड़े। अब बात करते हैं बेरोजगारी की। बेरोजगार युवक या युवती अवसाद में घिरे रहते है। वो अपना स्तर ऊपर उठाने के लिए, प्रयासरत रहते है उनके इस प्रयास का रास्ता कोई भी हो चाहें वो रास्ता अपराध की गलियों से हो कर ही क्यों ना निकलता हो, उनको इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उनको तो बस अपनी बेरोजगारी और अपनी कमजोर आर्थिक स्थिती को दूर करना है, वो कैसे भी हो कोण से भी रास्ते से हो उनको क्या? जब वो ये सब कर लेते है तो हम एक अच्छे नागरिक के जैसे एकजुट होकर कैंडिल मार्च निकालते है, तब हम सब लोगो के पास समय निकल आता है, जिसको देखो वो भाषण देता है कोई उपदेश देता है सब मिलकर शाशन को और सिस्टम को दोष देते है पर कभी अपने अन्दर नहीं झांक कर नहीं देखते, की ये सब क्यों हुआ किसकी लापरवाही से हुआ या हो रहा है, सिस्टम की या समाज की या समाज के लापरवाह लोगो की वजह से….सभी जागरूक नागरिक, इस सामाजिक पतन को रोकने हेतु कमर कस लें। कम से कम, अपने आस पास या व्यक्तिगत स्तर पर प्रयत्न अवश्य करें।

मेरे इन विचारों से किसी भी भाई एवं बहन के दिल को ठेस पहुंची होतो मुझे क्षमा करें। पर बात सत्य है।

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