एक युवती के परिजन एक संत के पास अपनी जिज्ञासा लेकर पहुंचे वह बोले- महाराज। अपनी बेटी का विवाह करना चाहते हें हमने अनेक युवको को देख भी लिया है, परन्तु अभी तक कोई सबसे योग्य युवक नहीं मिला। “संत बोले-बेटे। तुम पहले फूलो के बगीचे में से सबसे सुन्दर गुलाब का फूल तोड़कर लाओ, लेकिन शर्त यह है की एक बार आगे बढ़ने के बाद पीछे नहीं मुड़ना। ” थोड़ी देर बाद वह परिवार खाली हाथ लौटा। संत ने पूंछा- तुम्हे कोई सुन्दर फूल नहीं मिला? ” वह बोले – “महाराज हम अच्छे-से-अच्छे फूल की चाहत मे आगे बढते गये मार्ग में अनेक सुन्दर फूल दिखे, परन्तु हम इस चाहत में आगे बढते गये कि आगे और भी सुन्दर फूल होंगें। दुर्भाग्यवश अंत में फिर मुरझाये फूल मिले। ” संत बोले-जीवन भी इसी प्रकार है। सबसे योग्य की तलाश में भटकते रहोगे तो जो संभव है, फिर पलट कर आओगे तो उससे भी हाथ धो बैठोगे उम्र गुजरते देर नहीं लगती। इसलिए जो प्राप्त हो सकता है, उसी में संतोष करने की प्रवृति पैदा करो यही संभव समाधान है। आज 28-30-35 उम्र तक की समाज मे बहूत सी कुंवारी लडकियां घर बैठी है और कई तलाकशुदा लडकियां 40 की उम्र की भी घर बैठी है, क्योंकि इनके सपने हैसियत से भी बहूत ज्यादा है इस प्रकार के कई उदाहरण है। ऐसे लोगो के कारण समाज की छवि बहूत खराब हो रही है। सबसे बडा मानव सुख, सुखी वैवाहिक जीवन होता है। पैसा भी आवश्यक है लेकिन कुछ हद तक पैसे की वजह से अच्छे रिश्ते ठुकराना गलत है, पहली प्राथमिकता सुखी संसार व अच्छा घर परिवार होना चाहिये। ज्यादा धन के चक्कर मे अच्छे रिश्तो को नजर अंदाज करना गलत है, संपति खरीदी जा सकती है लेकिन गुण नही, आज की तारीख मे सबसे ज्यादा तलाक समाज मे दहेज की वजह से हो रहे हैं। इससे समाज बहुत प्रभावित होता है। मेरा मानना है कि घर परिवार और लडका अच्छा देखें बिलकुल गरीब भी नही देखे लेकिन ज्यादा के चक्कर मे अच्छे रिश्ते हाथ से नही जाने दे सुखी वैवाहिक जीवन जियें।
35 की उम्र के बाद विवाह नही होता सिर्फ समझौता होता है और अगर मेडिकल स्थिति से भी देखा जाए तो 40 की उम्र में गर्भाधान होने की उम्मीद भी कम हो जाती है अगर होती भी है तो उसमें बहुत सी समस्याएँ उत्पन्न होती है ।
आज उससे भी बुरी स्थिति कुंडली मिलान के कारण हो गई हैं।
आप सोचिए जिनके साथ कुंडली मिलती है लेकिन घर और लड़का अच्छा नहीं और जहाँ लड़के में सभी गुण हैं वहां कुण्डली नहीं मिलती और हम सब कुछ अच्छा होने के कारण भी कुण्डली की वजह से रिश्ता छोड़ देते है आप सोच के देखें जिन लोगो के 36 में से 20 या फिर 36 /36 गुण भी मिल गया फिर भी उनका तलाक हो गया क्यूंकि हमने लडके के गुण नही देखे। कुंडली मिलान के गुण देखे
अनाड़ियों ने पढे लिखे आधुनिक समाज को एक सदी और पीछे धकेल दिया कुंडली मिलान कुण्डली मिलान इस चक्कर में अच्छे रिश्ते नही हो पा रहे हैं और ये कुन्डली का बिज़नेस आज करोड़ रुपए का हो गया सुबह जब टेलीविजन खोलते ही अनाड़ी ज्योतिषी जी आपका भविष्य बताने लग जाते है और उनको खुद का नही पता होता जब उनकी बेटी या बेटा घर से भाग जाता है। और आजकल ये कुंडली कोई भी बनाने लगा है बस मोबाइल में एप्लिकेशन डाउनलोड करो और बन गए ज्योतिषी आजकल समाज में लोग बेटी के रिश्ते के लिए (लड़के मे) चौबीस टंच का सोना खरीदने जाते है। देखते देखते चार पांच साल व्यतीत हो जातें है, उच्च शिक्षा के नाम पर भी समय व्यतीत कर देते हैं। लङके देखने का अंदाज भी समय व्यतीत का अनोखा उदाहरण हो गया है? खुद का मकान है कि नही? अगर है तो फर्नीचर कैसा है? कमरे कितने हैं? गाडी है की नही? रहन सहन कैसा है? कितने भाई हैं? बंटवारे में मां बाप किनके गले पडे हैं। बहन कितनी हैं, उनकी शादी हूई कि नही? मा बाप का स्वभाव कैसा है? रिश्ते नाते वाले आधुनिक काल है कि नही, बच्चे का कद क्या है, रंग रूप कैसा है? शिक्षा, कमाई बैंक बैलेंस सब बातो पर पूछ ताछ पूरी होने के बाद कुछ प्रश्न पूछने में और समय व्यतीत हो जाता है। हालात तो क्या कहे माँ बाप की नींद खुलती है 30 की उम्र पर और चार पांच साल कि दौड धूप बच्चों की जवानी को बरबाद करने के लिए काफी है। इस वजह से अच्छे रिस्ते हाथ से निकल जाते है। और माँ बाप अपने ही बच्चों के सपनों को चूर चूर कर देते है।
मै सही तुम गलत के खेल में
न जाने कितने रिश्ते ढह गए…
एक समय था जब खानदान देख कर रिश्ते होते थे। वो लम्बे भी निभते थे। समधी समधन में मान मनुहार थी। सुख दुख में साथ था। रिश्ते नाते कि अहमियत का अहसास था। चाहे धन माया कम थी मगर खुशियाँ घर आंगन मे झलकती थी। कभी कोई ऊँची नीची बात हो जाती तो आपस में बड़े बुजर्ग संभाल लेते थे। तलाक शब्द रिश्तों में था ही नही, दाम्पत्य जीवन खट्टे मीठे अनुभव में बीत जाया करता था और दोनों एक दूसरे के बुढ़ापे की लाठी बनते थे और पोते पोतियों में संस्कारो के बीज भरते थे। अब कहा है वो संस्कार शादी में तो तलॉक की बाते हो जाती है। आँख की शर्म तो इतिहास हो गई। कमाल है आजाद रिश्तों में लोग बंधन ढूंढ रहे है और बंधे हुए रिश्तों में आजादी, नौबत आ जाती है रिश्तों में समझौता करने की, लड़का अपने समाज का नही होगा तो भी चलेगा, ऐसी बाते भी सामने आ रही है। आज समाज की लडकियां ओर लड़के खुले आम दूसरी जाति एवं धर्म में शादी कर रहे है और दोष दे रही है कि समाज में अच्छे लड़के, लड़किया मेरे लायक नही हैं। कारण लड़के, लडकिया आधुनिकता की पराकाष्ठा पार कर गई है। जब ये लड़के, लड़कियां लव मैरिज करते है तब ये कुंडली मिलान का क्या होता हैं तब तो कुंडली की कोई बात नहीं होती और यही माँ बाप सुब कुछ मान लेते हैं तब कोई कुण्डली, स्टैटस, पैसा, इनकम, बीच में कुछ भी नही आता। अगर अब भी माँ बाप नही जागेंगे तो स्थितियां विस्फोटक हो जाएगी। समाज के लोगो को समझना होगा लड़कियों की शादी 22-23-में हो जाये और लड़का 24-का हो। सब में सब गुण नही मिलते।
पीतल घर में मत लाओ। घर, गाडी, बंगला, से पहले व्यवहार तौलो, शराब, सिगरेट ना पीने वाला लड़का ढ़ूंढो।
किसी अज्ञात लेखक की इन पंक्तियों ने इस दौर को बखूबी चित्रित किया है।
“परिवार अब कहाँ, परिवार तो कब के मर गए, पहले अगाध स्नेह और प्यार था अब तो रिश्तों के आईने तड़क कर हो गए हैं कच्चे, केवल मैं और मेरे बच्चे, माँ बाप भी नहीं रहे परिवार का हिस्सा, तो समझिये खत्म ही हो गया किस्सा।” माँ बाप भी आर्थिक चकाचोंध में बह रहे है। आपसी प्रेम के खत्म होने मे, परिवार को तोड़ने में अब तो कानून ने भी बीज बो दिए हैं। जायज है लिव इन रिलेशनशिप और कॉन्ट्रैक्ट मैरिज ना मुर्गी ना अंडा ना सास ससुर का फंडा। जब पति पत्नी ही नहीं तो परिवार कहाँ से बसते कॉन्ट्रैक्ट खत्म, चल दिये अपने अपने रास्ते। इस दौरान जो बच्चे हुए पलते हैं यतीमों की तरह पीते हैं तिरस्कार का जहर अर्थ की भागम भाग में मीलों पीछे छूट गए हैं, रिश्ते नातेदार, टूट रहे हैं घर परिवार। सूख रहा है प्रेम और प्यार। परिवारों का इस पीढ़ी ने ऐसा तमाशा किया कि, आने वाली पीढ़ियां सिर्फ किताबों में पढ़ेंगी संस्कार। समाज को अब जागना जरूरी है, अन्यथा रिश्ते ढूढते रह जाएंगे।
🙏 आज की परिस्थिति को उजागर करने का प्रयास किया है। किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का मेरा इरादा कतई नहीं है।