परिचय
व्यक्ति का परिवार उसका छोटा संसार होता है। हम अपने जीवन में जो कुछ भी प्राप्त कर पाते हैं, वह परिवार के सहयोग और समर्थन स्वरूप ही प्राप्त कर पाते हैं। हमारे पालन-पोषण को हमारा परिवार अपनी पहली प्राथमिकता समझता है और जब तक हम सक्षम नहीं हो जाते हमारी सभी जरूरतों की पूर्ति निःस्वार्थ भाव से करता है।
परिवार के प्रकार
जैसा की हम सभी जानते हैं, परिवार के दो प्रकार है – मूल तथा संयुक्त परिवार। मूल परिवार की बात करें तो यह पश्चिमी देशों की सभ्यता है। जिसमें दम्पति अपने बच्चों के साथ निवास करता है, पर परिवार का यह स्वरूप अब विश्वभर में देखा जा सकता है। संयुक्त परिवार, संयुक्त परिवार की अवधारणा भारत की संस्कृति की छवि को दिखाता है। संयुक्त परिवार जिसमें दो पीढ़ी से अधिक लोग एक साथ निवास करते हैं जैसे दादा-दादी, चाचा-चाची, बुआ आदि।
व्यक्ति के जीवन में परिवार की भूमिका
एक बच्चे के रूप में हमें जन्म देने के बाद परिवार में उपस्थित माता-पिता हमारा पालन पोषण करते हैं। ब्रश करने तथा जूते का फीता बाँधने से लेकर पढ़ा-लिखा कर समाज का एक शिक्षित वयस्क बनाते हैं। भाई-बहन के रूप में घर में ही हमें दोस्त मिल जाते हैं, जिनसे अकारण हमारी अनेक लड़ाई होती है। भावनात्मक सहारा और सुरक्षा भाई-बहन से बेहतर और कोई नहीं दे सकता है। घर के बड़े-बुजुर्ग के रूप में दादा-दादी, नाना-नानी बच्चे पर सर्वाधिक प्रेम न्यौछावर करते हैं।
कटु है पर सत्य है, व्यक्ति पर परिवार का साया न होने पर व्यक्ति अनाथ कहलाता है। इसलिए समृद्ध या गरीब परिवार का होना आवश्यक नहीं पर व्यक्ति के जीवन में परिवार का होना अतिआवश्यक है।
निष्कर्ष-समाज में हमारे पिता के नाम के साथ हमें पहचान दिलाने से लेकर हमारे पिता को हमारे नाम से जानने तक, परिवार हमें हर प्रकार से सहयोग प्रदान करता है। परिवार के अभाव में हमारा कोई अस्तित्व नहीं है अतः हमें परिवार के महत्व को समझने की चेष्टा करनी चाहिए।
जीवन के विभिन्न पढ़ाव पर परिवार का सहयोग
एक छत के नीचे रहने वाला व्यक्तियों का समूह जो आपस में अनुवांशिक गुणों को संचरित करते हैं परिवार के संज्ञा के अंतर्गत आते हैं। इसके अलावा विवाह पश्चात या किसी बच्चे को गोद लेने पर वे परिवार का सदस्य हो जाते हैं। समाज में पहचान परिवार के माध्यम से मिलती है इसलिए हर मायने में व्यक्ति के लिए उसका परिवार सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
जीवन के विभिन्न पढ़ाव पर हमारे परिवार का सहयोग
बचपन – हमारे लिए परिवार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि परिवार हमारी पहली पहचान है, बाह्य शक्ति से (जो हमें हानि पहुंचा सकती है) परिवार हमारी ढ़ाल के रूप में रक्षा करता है। इसके अतिरिक्त हमारे सभी जायज जरूरतों की पूर्ति परिवार बिना कहे पूर्ण करता है।
किशोरावस्था – बच्चे के किशोरावस्था में कदम रखने पर जहां वह सबसे अधिक संवेदनशील स्थिति से गुज़र रहा होता है, परिवार, बच्चे को समझने का पूरा प्रयास करता है। उसे भावनात्मक सहयोग देता है। बच्चे के अंदर हो रहे उथल-पूथल का समाधान परिवार अपनी सूज बूझ से करता है।
युवावस्था – हमारे वयस्क हो जाने पर कई विषयों पर हमारी सहमति हमारे परिवार के साथ मेल नहीं खाती है, पर न चाहते हुए भी वह हमारे खुशी के लिए समझौता करना सीख जाते है और हमारे साथ हर परिस्थिति में खड़े रहते हैं।
परिवार और हमारे मध्य दूरी के कारण
परिवार की अपेक्षाएं – हमारे किशोरावस्था में पहुंचने पर जहां हमें लगने लगता है हम बड़े हो गए हैं वहीं परिवार की कुछ अपेक्षाएं भी हम से जुड़ जाती हैं। ज़रूरी नहीं हम उन अपेक्षाओं पर खरे उतर पाए अंततः रिस्तों में खटास आ जाती है।
हमारा बदलता स्वरूप – किशोरावस्था में पहुंचने पर बाहरी दुनिया के प्रभाव में आकर हम स्वयं में अनेक परिवर्तन करना चाहते हैं, जैसे की अनेक दोस्त बनाना, प्रचलन में चल रहे कपड़े पहनना, परिस्थिति को अपने तरीके से हल करना आदि। इस सब तथ्यों पर हमारा परिवार हमारे साथ सख्ती से पेश आता है ऐसे में हमारी न समझी के कारण कई बार रिस्तों में दरार आ जाते हैं। यहां एक दूसरे को समझने की ज़रूरत है।
विचारधारा में असमानता – अलग पीढ़ी से संबंधित होने के वजह से हमारे विचार और हमारे परिवार जनों के विचारधारा में बहुत अधिक असमानता होती है। जिसके वजह से परिवार में क्लेश हो सकता है।
समाज पर परिवार का प्रभाव
बढ़ती उम्र के बच्चों के लिए परिवार का व्यवहार सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। देश में होने वाले अपराधों में बाल अपराध के मामलात दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहें हैं। बाल अपराध से आशय बच्चों द्वारा किए गए अपराध से है। बच्चों के बाल अपराधी बनने के कई कारणों में से एक परिवारिक व्यवहार भी है। माता-पिता के आपसी तनाव या अपने में व्यस्त रहने के वजह से बच्चे पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है तथा आगे चल कर वह समाज के प्रतिकूल काम कर सकते हैं। इस कारणवश परिवार का सही मार्ग दर्शन बच्चे के साथ-साथ समाज के लिए भी अति आवश्यक है।
परिवार महत्वपूर्ण क्यों है? व्यक्ति के व्यक्तित्व का पूर्ण निर्माण परिवार द्वारा होता है इसलिए सदैव समाज व्यक्ति के आचरण को देखकर उसके परिवार की प्रशंसा या अवहेलना करता है। व्यक्ति के गुणों में जन्म से पूर्व ही उसके परिवार के कुछ अनुवांशिक गुण उसमें विद्यमान रहते हैं। व्यक्ति की हर परेशानी (आर्थिक, समाजिक, निजी) परिवार के सहयोग से आसानी से हल हो सकती है।
मतलबी दुनिया में जहां किसी का कोई नहीं होता वहां हम परिवार के सदस्यों पर आख बंद कर के विश्वास कर सकते हैं।
परिवार व्यक्ति को मजबूत रूप से भावनात्मक सहारा प्रदान करता है।
जीवन में सब कुछ प्राप्त कर पाने की काबिलियत हमें, परिवार द्वारा प्रदान की जाती है।
परिवार के सही मार्ग दर्शन से व्यक्ति सफलता के उच्च शिखर को प्राप्त करता है इसके विपरीत गलत मार्ग दर्शन में व्यक्ति अपने पथ से भटक जाता है।
हमारे जीत पर हमारी सराहना तथा हार पर संतावना परिवार से मिलने पर हमारा आत्मविश्वास बढ़ जाता है। यह हमारे भविष्य के लिए कारगर साबित होता है।
परिवार के प्रति हमारा दायित्व
परिवार से प्राप्त प्यार और हमारे प्रति उनका निस्वार्थ समर्पण हमें उनका सदैव के लिए ऋणी बनाता है। अतः हमारा, हमारे परिवार के प्रति भी विशेष कर्तव्य बनता है।
बच्चों को सदैव अपने से बड़ों की आज्ञा का पालन करना चाहिए और स्वयं की बात समझाने का प्रयास करना चाहिए। किसी बात के लिए हठ करना उचित नहीं।
परिवार के इच्छाओं और अपेक्षाओं पर सदैव खरा उतरने का प्रयास करना चाहिए।
बच्चों और परिवार के मध्य कितना भी अनबन हो बच्चों को परिवार से दूर कभी नहीं होना चाहिए।
जिस बातों पर परिवार सहमत नहीं हैं, उन बातों पर पुनः विचार करना चाहिए और स्वयं समझने का प्रयास करना चाहिए।