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अद्भुत शौर्य व पराक्रम के धनी थे, हिन्दवा सूरज महाराजा सूरजमल

महाराजा सूरजमल की पुण्यतिथि पर विशेष…

तेजल ज्ञान उज्जैन। हिन्दवा सूरज के नाम से प्रख्यात महाराजा सूरजमल अद्भूत शौर्य व पराक्रम के धनी थे और 17वीं शती में उनकी वीरता का डंका इस कदर गूंजता था कि यवन भी कांप उठते थे। 13 फरवरी 1707 को राजा बदनसिंह के महल में जन्मे महाराजा सूरजमल के बचपन में ही माता रानी देवकी ने शौर्य-वीरता के ऐसे बीज रोप दिए थे कि युवावस्था में उनके सात फीट दो ईंच की ऊंचाई व डेढ़ सौ किलोग्राम वजनी गठीले-रोबदार शरीर को देख दुश्मन यूं ही पस्त हो जाते थे। महाराजा सूरजमल ने भरतपुर में 1755 से 1763 तक राज किया। महाराजा सूरजमल की बहादुरी की कहानी इससे ही स्पष्ट हो जाती है कि उन्होंने मात्र 59 वर्षीय जीवनकाल में ही 80 से ज्यादा युद्ध लड़े और पहला युद्ध 19 वर्ष की आयु में उन्होंने सोगरगढ़ी का जीता था। तत्कालीन समय में महाराजा सूरजमल ने फरीदाबाद में मुर्तिजाखां को हराया और नादिरशाह के विरुद्ध लोगों की दिल्ली में मदद की। 1753 में दिल्ली के एक बड़े क्षेत्र पर महाराजा ने कब्जा जमा लिया था और बाद में जयपुर राजा के मध्यस्थता करने पर संधि करनी पड़ी। 1754 में कुम्हेर में मराठा व मुगल सेना को कुम्हेर से खदेड़ा था और इस युद्ध में खांडेराव होल्कर मारा गया था, जिनकी याद में महाराजा ने वहां छतरी बनवाई। 1757 में अहमदशाह अब्दाली को मथुरा, वृन्दावन, भरतपुर, गोकुल, बल्लभगढ़ आदि से एक ही युद्ध में निकाल फेंका था। 1761 में अब्दाली से मराठों ने युद्ध लड़ा और उसमें अकेले महाराजा सूरजमल ने मराठा सेना का साथ दिया जिस कारण पेशवा ने उन्हें हिंदुस्तान का एकमात्र मर्दमाणुस कहा था। 1761 में ही आगरा के लालकिले पर मुगल सेनापति काजिल खां को हराकर कब्जा जमाया और महाराजा ने ताजमहल की कब्रों पर घोड़े बंधवा दिए थे। 1763 में ब्राह्मण कन्या की रक्षा के लिए उन्होंने दिल्ली पर फिर आक्रमण किया और दिल्ली का अधिकांश हिस्सा जीत लिया था। 25 दिसम्बर 1763 को महाराजा सूरजमल अपने पुत्र नाहरसिंह को कमान देकर अकेले हिंडौन नदी किनारे घूमने निकले थे और पीछे से मुगल सैनिकों ने उन पर गोलियां बरसा दी। यहां भी उन्होंने घायल अवस्था में संघर्ष किया और वीरगति को प्राप्त हुए। महाराजा सूरजमल के शासनकाल में डीग, भरतपुर, कुम्हेर, ब्रज आदि में किले बनवाए और लोहागढ़ का अजेय किला भी उनकी निर्माणकला में शामिल रहा। अब्दाली व मुगलों द्वारा गोवर्धन, मथुरा, वृंदावन, नंदगांव में तोड़े गए मंदिर, घाट आदि का निर्माण करवाया और मथुरा में श्रीकृष्णजन्मभूमि मंदिर भी आधी मस्जिद तोड़कर उन्होंने ही बनवाया था जो आज भी विद्यमान है। भरतपुर में बांकेबिहारी मंदिर, कैलादेवी मंदिर, लक्ष्मण मंदिर आदि भव्य निर्माणकला के नमूने हैं। उनके शासनकाल में भरतपुर, धोलपुर, आधा हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, ब्रजमंडल, दिल्ली के कई हिस्सों पर राज था। हिन्दू धर्म के लिए किए गए कार्यों की वजह से महाराजा सूरजमल हिन्दवा सूरज के नाम से जाने जाते हैं और 17वीं शती के मुस्लिम यात्री ने उन्हें भारत का अंतिम हिन्दू सम्राट भी लिखा है। उनके राज्य में गौहत्या पर प्रतिबंध था और उनके खौफ से अवध के नवाब ने भी वहां पर गौहत्या पर रोक लगा रखी थी। पत्रिका

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