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चिड़िया का आशीर्वाद”-(ये पंख उधार लिए)

लघुकथा —–

“चिड़िया का आशीर्वाद”-(ये पंख उधार लिए)

तेजल ज्ञान मथुरा। सीढ़ियों के ऊपर वाले मोड़ पर, गर्मियों में एक चिड़िया ने बहुत मेहनत से घोंसला बनाया। मैं बी. एस. सी. के बाद कंपटीशन की तैयारी कर रही थी। मेरा कमरा सीढ़ियों के पास ही था, उसकी खिड़की उधर खुलती थी। मैं तीन-चार दिन से देख रही थी कि, एक चिड़िया दिन में 25-30 चक्कर लगाती है, और मुंह में नीड़ बनाने के लिए तिनका दबाकर लाती है। उसने चार दिन में अपना घर तैयार कर लिया। और पांचवें दिन उसने दो अंडे दिए। अक्सर मेरे पहुंचने पर वह उड़ जाया करती थी, परन्तु आज वह टस से मस नहीं हुई। मैं समझ गई, मैंने एक कटोरे में पानी और दाना उसके पास रख दिया।अब इसे बाहर कुछ दिनों तक जाना नहीं पड़ेगा। प्रतिदिन उसका ध्यान रखने लगी।आज जब ऊपर गयी तो, उसके पास दो बच्चे नींद में सो रहे थे। मुझे उन्हें देखकर बहुत खुशी हुई। मैं प्रतिदिन की तरह दाना पानी रख आई।अब क्या था, बच्चे बड़े होने लगे। अपनी मां के साथ खूब मस्ती करते, चोंच से चोंच लड़ाते, चिड़िया उनको अपनी चोंच से दाना पानी खिलाती। बहुत दिनों बाद चिड़िया बाहर की सैर करने निकली,शायद अपने बच्चों को उड़ना सिखा रही हो। परन्तु ये क्या हुआ? मैंने जब बाहर देखा तो, चिड़िया घायल पड़ी पंख फड़फड़ा रही थी। मैंने उसे तुरंत उठाया और घायल जगह पर दवाई लगाई, पानी पिलाया, और बच्चों के पास बैठा दिया।दो घंटे बाद जब देखने गयी तो, तीनों बहुत उदास बैठे थे, क्योंकि चिड़िया से अब उड़ा नहीं जा रहा था। मैंने उनकी बहुत सेवा की, मुझे देखते ही वह चीं चीं करने लगती। मेरे उस समय कई टेस्ट क्लीयर हुए, उनमें से आज पायलट का इंटरव्यू था,उसी को देने जा रही थी।मेरा दो दिन का सफर था, इसलिए चिड़िया के पास अधिक दाना पानी लेकर पहुंची —
मैंने भी चिड़िया की आंखों में आंखें डालकर उससे आशीर्वाद लिया, तो उधर से आवाज आई,जाओ कविता मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूं, तुमने मेरी बहुत सेवा की है,लो अब ये मेरे पंख तुम ले जाओ, और आसमान में इनसे उड़ान भरो।
सत्यता तो यह है कि, मैं इंटरव्यू देकर आई तो, चिड़िया के प्राण पखेरू हो चुके थे। मैं उस इंटरव्यू में पास हुई, और मुझे फ्लाइट उड़ाने का प्रथम अवसर दिल्ली टू बंबई का मिला। मैं सोचने लगी शायद यह उस चिड़िया का ही आशीर्वाद है, मैंने उसी से ये पंख उधार लिए हैं, जिनसे मैं आसमान में उड़ान भर रही हूं।ऐसा मुझे महसूस हुआ।

वरिष्ठ साहित्यकार —–
डॉ. अनीता चौधरी (मथुरा से)

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